अग्निसार प्राणायाम क्या है?
यह प्राणायाम के महत्वपूर्ण भागों में से एक है जिसका अभ्यास कपालभाति प्राणायाम के साथ किया जा सकता है।
विधि
इस प्राणायाम का अभ्यास खड़े होकर, बैठकर या लेटकर तीनों तरह से किया जा सकता है। बैठ कर की जाने वाले अभ्यास में इसे सिद्धासन में बैठकर दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखकर किया जा सकता हे. इस क्रिया को करने के लिए शरीर को स्थिर कर पेट और फेंफड़े की वायु को बाहर छोड़ते हुए उड्डियान बंध लगाएँ अर्थात पेट को अंदर की ओर खींचन होता हे. सहजता से जितनी देर श्वास रोक सकें रोंकन चाहिए और पेट को नाभि पर से बार-बार झटके से अंदर खींचने और ढीला छोड़न चाहिए अर्थात श्वास को रोककर रखते हुए ही पेट को तेजी से लगभग तीन बार फुलान और पिचकान चाहिए। एस क्रिया को करते समय ध्यान पर रखना चाहिए। मणिपुर चक्र भारतीय योगासन विधि में उल्लेखित के सात चक्रों में से एक है। समय- यह क्रिया ३-५ मिनट तक करनी चाहिए।
अग्निसार प्राणायाम कैसे करें?
- पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं और हाथों को घुटनों पर आरामदायक स्थिति में रखें
- सांस को बाहर छोड़ते हुए दोनों हाथों को सीधा करके घुटनों पर हल्का सा दबाव बनाकर रखें। पेट को सिकोड़ें और फैलाएं।
- पेट के अंदर नाभि को गहराई से छूने की कोशिश करें।
- गरीब करने से पहले पेट और हाथों को सामान्य रखें, यानी श्वास अंदर लें। अब गहरी, स्थिर और धीमी सांस लें।
- यह अग्निसार प्राणायाम का एक चक्र है। एक चक्र में कम से कम दस बार अनुबंध करें और पेट का विस्तार करें।
- अपनी क्षमता के अनुसार संख्या को बढ़ाकर 25-30 गुना करें।
अग्निसार प्राणायाम करने के फायदे
- आंतरिक ऊर्जा और जीवन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
- कब्ज और गैस्ट्रिक विकारों को ठीक करता है।
- आलस्य, अरुचि को दूर करता है और आंतरिक अंगों को मजबूत करता है।
- इस प्राणायाम से दमा, क्षय रोग और अन्य गंभीर रोग दूर होते हैं।
- तंद्रा को ठीक करता है और आंतरिक ऊर्जा का संचार करता है।